नई दिल्ली. क्या रोज एक घंटे की रील-स्क्रॉलिंग के बाद दिमाग सुस्त, भारी या बेचैन लगता है… ‘साइकोलॉजिक बुलेटिन’ में प्रकाशित नई मेटा-स्टडी ने 98,299 लोगों के डेटा वाली 71 स्टडीज का विश्लेषण कर बताया है कि लगातार रील या शॉर्ट वीडियो देखना ध्यान, स्मृति और मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करता है। जितना ज्यादा हम स्क्रॉल करते हैं, उतनी ही कम दिमाग की गहराई में उतरने की क्षमता बचती है। ‘फीड्स, फीलिंग्स, एंड फोकस’ स्टडी बताती है कि रील दिमाग में तेज, नई और तुरंत खुशी देने वाली उत्तेजनाएं भरती हैं। हर स्वाइप एक छोटी ’डोपामाइन किक’ देती है। डोपामाइन, वही रसायन है जो हमें बार-बार वही काम करने के लिए प्रेरित करता है जिससे अच्छा महसूस हो। दिक्कत यह है कि इन छोटी-छोटी लहरों के बाद दिमाग उतनी ही तेजी से नीचे भी आता है और यही गिरावट थकान, सुस्ती और मानसिक धुंध पैदा करती है।
शोध में बच्चों, किशोरों और वयस्कों, तीनों पर असर लगभग समान पाया गया। यानी यह जेन-जेड की नहीं, हर उम्र की समस्या है। सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों में दर्ज हुआ जो हर बार खुद से कहते हैं, ’बस एक वीडियो और…’ फिर इसमें कितने ही घंटे बीतते जाते हैं। सबसे ज्यादा बुरे असर बिताए गए घंटों से नहीं, बल्कि इस्तेमाल के मजबूरी वाले पैटर्न से जुड़े थे, जिसमें लोग चाहकर भी स्क्रॉल करना बंद नहीं कर पाते।
यह मिल रहे संकेत तो लगाएं ब्रेक
रिपोर्ट के अनुसार देर तक मोबाइल की स्क्रीन को स्क्रॉल करते रहना नींद की गुणवत्ता, मूड और मानसिक स्पष्टता को बिगाड़ देता है। कम नींद, चिंता और तनाव आगे चलकर फोकस को और कमजोर करता है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर आपको ध्यान में गिरावट, चिड़चिड़ापन, स्क्रॉल रोकने में परेशानी और नींद में गड़बड़ी महसूस हो रही है, तो यह दिमाग का साफ संकेत है, अब थोड़ी दूरी जरूरी है।







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