प्राकृतिक जीपीएस
करोड़ों साल पुराने जीवाश्मों में मिला दिशा पहचानने का सुराग
नई दिल्ली. क्या आप सोच सकते है कि करोड़ों साल पहले भी जीव धरती के चुंबकीय नक्शे को पढ़कर अपना रास्ता ढूंढते थे? वैज्ञानिकों ने ऐसा सयुत खोज निकाला है जो बताता है कि पक्षियों और कछुओं की तरह प्राचीन जीव भी ‘मैग्नेटोरिसेप्शन यानी ‘जैविक जीपीएस’ का इस्तेमाल करते थे। यह क्षमता कैसे काम करणी है, यह आज भी रहस्य है लेकिन अब इसके पुराने निशान हाथ लग गए है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रकृति ने बहुत पहले ही ‘कंपास’ बना लिया था। वैक्टीरिया में मौजूद साधारण जीवाश्मों के अंदर घूमते इलेक्ट्रॉनों से बनने वाले सूक्ष्म चुंबकीय पैटर्न चुंबकीय संवेदना लाखों वर्षों में विकसित होकर पक्षियों और समुद्री जीयो की जटिल नेविगेशन प्रणाली में बदल गई। जीवन के विकास की कहानी को नई दिशा देने वाली स्टडी के नतीजे नेचर जर्नल में छपे हैं।
बनानी पड़ी एक्स-रे से भी आगे की तकनीक
इन जीवाश्मों की जांच आसान नहीं थी। सामान्य एक्स-रे इनके भीतर नहीं पहुंच पाते थे। इसलिए जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट की वैज्ञानिक क्लेयर डॉनेलो ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी व हेल्महोल्ल्स जेंद्रम बर्लिन के वैज्ञानिकों को समुद्र की गहराइयों में बेहद छोटे जीवाश्म मिले।
समुद्र में छिपा 9.7 करोड़ साल प्राचीन राज
जिन्हें मैग्नेटोफॉसिल कहा जाता है। ये 97 मिलियन साल पुराने हैं। इनकी संरचना देखकर पता चला कि इन्हें बनाने वाले जीव दिशा मैग्नेटिक टोमोग्राफी नाम की नई तकनीक बनाई। इस तकनीक की मदद से वैज्ञानिक जीवाश्मों के अंदर घूमते इलेक्ट्रॉनों से बनने वाले सूक्ष्म चुंबकीय पैटर्न देख पहचानने में माहिर थे। शोधकर्ता रिथ हैरिसन के अनुसार, यह पहला सीधा सबूत है कि करोड़ों साल पहले जीव धरती के चुंबकीय क्षेत्र को पढ़कर सफर करते थे। हालांकि, यह पता नहीं लग पाया है कि यह जीवाश्म किस जीव के है।








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