कुंडली के बजाय शादी के पहले सिकलसेल मिलान जरूरी हो
रायपुर. प्रदेश में आने वाले कुछ दिनों में सिकलसेल एनीमिया की जेनेटिक टेस्टिंग होगी, साथ ही रिसर्च भी की जाएगी। इससे सिकलसेल बीमारी को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। नवा रायपुर स्थित पं. दीनदयाल हैल्थ साइंस एंड आयुष विवि ने पिछले साल सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलेक्यूलर बायोलॉजी हैदराबाद के साथ एमओयू किया था। विशेषज्ञों के अनुसार यह एमओयू एडवांस जेनेटिक रिसर्च व टेस्टिंग के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
प्रदेश की 10 फीसदी आबादी यानी 25 लाख से ज्यादा सिकलसेल बीमारी के करियर है। ऐसे में टेस्टिंग व करियर एनालिसिस होने से बीमारी की जड़ तक पहुंचने में मदद मिलेगी। बीमारी को और लोगों में या जाति विशेष में फैलने से कैसे रोका जा सकता है, इस पर रास्ता मिलने की संभावना है। विवि व सीएसआईआर के बीच हुए एमओयू के अनुसार, जेनेटिक टेस्टिंग व करियर एनालिसिस से बीमारी की शुरुआती पहचान को बढ़ावा मिलेगा। इससे जेनेटिक विकार को बेहतर ढंग से समझने और समाधान करने में मदद मिलेगी। फैकल्टी, रिसर्च स्कॉलर व छात्र आपसी दौरे कर सकेंगे। इससे एकेडमिक कार्य व रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा। ज्ञान को साझा करने से कौशल विकास को बढ़ाने में मदद मिलेगी। दोनों संस्थान संयुक्त रूप से जेनेटिक डिसऑर्डर, सेल्यूलर, मॉलेक्यूलर बायोलॉजी व सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित सेमिनार करेंगे, जिससे सभी को सीखने का मौका मिलेगा। प्रदेश के लिए यह एमओयू कितना लाभदायक होगा, ये देखने वाली बात होगी।
कई बार माता-पिता को पता नहीं रहता कि बच्चों को है सिकलसेल
मेडिसिन के सीनियर प्रोफेसर डॉ. योगेंद्र मल्होत्रा व बोन मेेरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ. विकास गोयल के अनुसार, कई माता-पिता को पता नहीं होता है कि उनके बच्चों को सिकलसेल है। जिन्हें पता होता है, वे नहीं बताते कि कहीं उनके बच्चों की शादी टल न जाए, इसलिए चुप रहते हैं। जागरुकता में कमी के चलते यह बीमारी बढ़ रही है। शादी के पहले स्क्रीनिंग होने से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। रिसर्च से बीमारी को जानने का मौका मिलेगा।
48 करोड़ का सिकलसेल का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस भी
पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के पास स्थित सिकलसेल संस्थान को 48 करोड़ की लागत से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाया जा रहा है। हालांकि अब तक यह अधूरा है। यहां मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी किया जाएगा। संस्थान में सीनियर व जूनियर डॉक्टर रहेंगे, जो रिसर्च करेंगे। सिकलसेल पीड़ित मरीज असहनीय पीड़ा से गुजरते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उनकी सही समय पर स्क्रीनिंग हो, बीमारी की पहचान हो ताकि तत्काल इलाज तत्काल शुरू किया जा सके। यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग प्राइमरी स्कूलों में छात्रों की स्क्रीनिंग कर रहा है।ताकि बीमारी का पता लगते ही इलाज शुरू हो सके।
शादी के दौरान दूल्हा-दुल्हन सिकलसेल के मरीज न हों, न ही वाहक हो। विशेषज्ञों के अनुसार, इसके लिए पंडितों को भी पहल करनी चाहिए। कुंडली के साथ-साथ सिकलसेल कुंडली का भी मिलान करना चाहिए। इससे इस गंभीर बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। इसके लिए समाज के लोगों को ही आगे आना होगा। प्रदेश के एक बड़े समाज में अब सिकलसेल कुंडली बनाई जा रही है। यह अच्छी पहल है। हालांकि पूरे प्रदेश में यह शुरू नहीं हुआ है। बाकी कुछ जाति विशेष को भी ये पहल करनी होगी। इससे बीमारी को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी।







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