बीच में बना पिघली चट्टानों का समुद्र
नई दिल्ली. एक नए भूवैज्ञानिक अध्ययन ने इस धारणा को झकझोर दिया है कि हिमालय सिर्फ अतीत की टक्कर से बना था। अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हिमालय को उठाने वाली इंडियन प्लेट आज भी भीतर से फट और मुड़ रही है, मानो धरती के नीचे कोई अदृश्य जंग अब भी जारी हो। करीब 5 करोड़ वर्ष पहले इंडियन प्लेट ने यूरेशियन प्लेट से टकराकर हिमालय की नींव रखी थी। मगर नए 3डी सिस्मिक डेटा से पता चला है कि यह प्लेट एकसार नहीं, बल्कि टुकड़ों में खिसकती, मुड़ती और फटती हुई तिब्बत के नीचे धंस रही है। 90 डिग्री से 92 डिग्री पूर्वी देशांतर के बीच, यानी यादोंग-गुलू और कोना-सांगरी रिफ्ट जोन में प्लेट की संरचना बुरी तरह ‘विकृत’ है। यानी हिमालय अब भी धरती के भीतर की शक्ति से तराशा जा रहा है।
पश्चिमी हिमालय में इंडियन प्लेट अपेक्षाकृत स्थिर है लेकिन पूर्वी हिस्से में निचली परत, जिसे लिथोस्फेरिक मैंटल कहा जाता है, ऊपरी परत से अलग होकर पृथ्वी के भीतर गहराई तक धंस गई है। इस विभाजन से दोनों के बीच एक पिघली हुई चट्टानों का क्षेत्र बन गया है, जैसे उबलता हुआ समुद्र। शोध बताता है कि तिब्बत की नई परत अब लगभग 100 किलोमीटर दक्षिण तक फैल चुकी है, यानी तिब्बती आधारशिला अब भी बढ़ रही है, विकसित हो रही है।
भूकंपों को मिली नई व्याख्या
हार्वर्ड ईएसएस ओपनआकाईइव के प्री—प्रिंट में प्रकाशित स्टडी के अनुसार महाद्वीपीय प्लेटें पहाड़ों को ऊपर से नहीं, नीचे से भी गढ़ती रहती है। हीलियम गैस उत्सर्जन और गहरे भूकंपों के पैटर्न से भी शोध को समर्थन मिला है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंडियन प्लेट का फटना और मुड़ना ही हिमालय के तीव्र भूकंपीय गतिविधियों की वजह हो सकता है।







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