रायपुर. इन दिनों पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता जताने और उन्हें याद करने का 15 दिवसीय पितृ पक्ष चल रहा है। पूर्वजों के श्राद्ध किए जा रहे हैं और इस दौरान भोजन आदि सबसे पहले कौओं को दिया जाता है। कुछ समय पूर्व तक गली-गली में दिखने वाले कौए नहीं दिखने से लोग अब मजबूरी में सिर्फ गाय को ही भोजन दे पा रहे हैं। मन में एक शंका रहती है कि कौओं के बिना श्राद्ध कैसे पूरा माना जाए। श्राद्ध वाले दिन लोग छतों और आंगन में भोजन रख देते थे। धार्मिक मान्यता है कि कौओं के खाने से पितरों को भोजन मिल जाता है। पिछले कुछ सालों में कौओं की संख्या तेजी से घट रही है। पहले हजारों की तादाद में मौजूद रहने वाले ये पक्षी अब गिने-चुने पेड़ों और कुछ खास जगहों पर ही दिखाई देते हैं।
इस संबंध में बर्ड वॉचर डॉ. दिलीप वर्मा कहते हैं कि भोजन के स्रोत कम होने और हैबिटेट उजड़ने से कौओं की संख्या तेजी से गिरी है। वहीं, सीजी बर्ड काउंट इंडिया के रीजनल कोऑर्डिनेटर हाकिमुद्दीन एफ. सैफी बताते हैं कि शहरीकरण और रहवास स्थलों की कमी ने कौओं के जीवन पर गहरा असर डाला है। हालांकि माना में पुलिस ट्रेनिंग सेंटर जैसे इलाकों में शाम ढलते ही इनके झुंड दिखाई देते हैं, जो उम्मीद भरी खबर है।
भोजन व आश्रय जरूरी
पुराने घरों और विशाल पेड़ों की कमी से कौओं का बसेरा उजड़ गया। पक्षियों के लिए भोजन और आश्रय जरूरी है, लेकिन शहर की भागदौड़ में ये दोनों ही चीजें खोती जा रही हैं। यही वजह है कि कौए और गौरैया जैसे आम पक्षी अब खास बनते जा रहे हैं।
सुरक्षित आश्रय
शहर में जहां कौओं की गिनती उंगलियों पर सिमट गई है, वहीं माना पुलिस ट्रेनिंग सेंटर जैसे इलाकों में कौए बड़ी संख्या में हर शाम लौटते हैं। वहां के घने पेड़ उनके लिए सुरक्षित आश्रय साबित हो रहे हैं।







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