December 6, 2025 12:35 pm

Home » ब्रेकिंग न्यूज़ » सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने वाले राज्यों से जवाब तलब किया

सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने वाले राज्यों से जवाब तलब किया

162 Views

शीर्ष अदालत ने कानून पर रोक की मांग वाली याचिकाओं पर दिया नोटिस

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों से जवाब तलब किया है। शीर्ष अदालत ने राज्यों को चार सप्ताह में जवाब दायर करने को कहा और उसके बाद याचिका दायर करने वालों को अपना जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है। साथ ही मामले की सुनवाई छह सप्ताह बाद तय की है।

मामला 01

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने संबंधित राज्यों को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यों से जवाब मिलने के बाद ही वह ऐसे कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के अनुरोध पर विचार करेगी। पीठ नौ राज्यों-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक में धर्मांतरण से संबंधित कानूनों की सांविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता संगठन सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने कहा कि इस मामले की सुनवाई बेहद जरूरी है क्योंकि राज्य इन कानूनों को और सख्त बनाने के लिए संशोधन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि इन कानूनों को धर्म स्वतंत्रता अधिनियम कहा जाता है लेकिन ये अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित कर रहे हैं और अंतर्धार्मिक विवाहों और धार्मिक प्रथाओं को निशाना बना रहे हैं।

यूपी के कानून का दिया हवाला

सिंह ने कहा कि 2024 में उत्तर प्रदेश में कानून संशोधन करके विवाह के माध्यम से गैरकानूनी धर्म परिवर्तन की सजा को कम से कम बीस साल कर दिया गया है, जो जीवन भर के लिए आजीवन कारावास तक हो सकती है। साथ ही पीएमएलए में मौजूद दोहरी शर्तें जोड़कर जमानत की शर्तों को और भी कड़ा कर दिया गया है। यह संशोधन तीसरे पक्ष को शिकायत दर्ज करने की भी अनुमति देता है।

दो राज्यों में कानून पर है अंतरिम रोक

नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन की अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने भी पीठ को बताया कि उनकी मुवक्किल ने भी कानूनों पर रोक लगाने के लिए इसी तरह का एक आवेदन दायर किया है। पीठ को यह भी बताया गया कि गुजरात हाईकोर्ट ने 2021 में गुजरात धर्म परिवर्तन कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इसी तरह का एक स्थगन आदेश पारित किया था। इन राज्यों ने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

शीर्ष कोर्ट ने नोडल वकील नियुक्त किए… पीठ ने प्रतिवादी राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त

सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज को स्थगन आवेदनों पर जवाब दाखिल करने के लिए कहा। पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील सृष्टि अग्निहोत्री और प्रतिवादियों की ओर से रुचिरा गोयल को नोडल वकील नियुक्त किया। वहीं, वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर उस जनहित याचिका को अलग कर दिया जिसमें जबरदस्ती और छल-कपट के माध्यम से धर्मांतरण को अपराध घोषित करने के लिए एक अखिल भारतीय कानून बनाने की मांग की गई है।

अभय चौटाला को जारी समन रद्द करने के खिलाफ याचिका खारिज

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 2008 में मानहानि के एक मामले में इंडियन नेशनल लोकदल के प्रमुख अभय सिंह चौटाला के खिलाफ जारी समन को रद्द करने के पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिका एक सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी परमवीर राठी की ओर मामला 2 से दायर की गई थी।

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि वह हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है। याचिका में हाईकोर्ट के 19 दिसंबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी। आईपीएस अधिकारी ने अगस्त 2008 में चौटाला और कुछ अन्य व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अधिकारी के खिलाफ अपमानजनक बयान दिए थे, जो विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए थे और इससे उनकी प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति हुई है। गुरुग्राम की अदालत ने 2010 में चौटाला को तलब किया था। बाद में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने भी आदेश को बरकरार रखा। ब्यूरो

भक्त मंदिरों में चढ़ावा विवाह भवन बनाने के लिए नहीं देते

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिरों में भक्त जो चढ़ावा चढ़ाते हैं वह विवाह भवन बनाने के लिए नहीं है। शीर्ष अदालत ने हालांकि उस आदेश पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मंदिर के धन को सार्वजनिक या सरकारी धन नहीं माना जा सकता। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट मदुरै पीठ ने राज्य सरकार के उन आदेशों को रद्द कर दिया था, जिनमें मंदिरों को मिले दान से तमिलनाडु के विभिन्न स्थानों पर विवाह भवन बनाने के आदेश दिए गए थे। हाईकोर्ट ने 19 अगस्त के अपने आदेश में कहा था कि विवाह समारोहों के लिए किराये पर विवाह हॉल बनाने का सरकार का निर्णय धार्मिक उद्देश्यों की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता।

मामला 3 जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, भक्त इन विवाह मंडपों के निर्माण के लिए मंदिर को अपना धन नहीं देते। यह मंदिर के सुधार के लिए हो सकता है। व्यूरो

live36garh
Author: live36garh

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *