विज्ञान : मातृत्व या पितृत्व का सपना अधूरा मान चुके लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण
अभी यह खोज केवल प्रयोगशाला तक सीमित, उपचार तक पहुंचने वक्त
मातृत्व या पितृत्व की चाह सिर्फ प्रकृति के भरोसे नहीं रहेगी
नई दिल्ली। कल्पना कीजिए, आपकी त्वचा की एक साधारण कोशिका किसी दिन आपके अपने बच्चे का आधार बन जाए! यह कभी अकल्पनीय लगता था, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसकी ओर पहला ठोस कदम बढ़ा दिया है। ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी (ओएचएसयू)के शोधकताअरं ने इंसानी त्वचा से ऐसे अंडाणु (एग) तैयार किए हैं, जिन्हें निषेचित कर शुरुआती भ्रूण तक विकसित किया गया। यह प्रयोग लाखों ऐसे परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है, जो अब तक मातृत्व या पितृत्व का सपना अधूरा मान चुके थे।
कैसे बदली त्वचा जीवन का आधार इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों ने त्वचा की कोशिका से नाभिक (न्यूक्लियस) निकाला और इसमें व्यक्ति की पूरी आनुवंशिक जानकारी मौजूद जापान में चूहों पर प्रयोग, दो पिताओं से जन्मे चूहे कोशिका निकाला।
त्वचा कोशिकाओं से अंडाणु तैयार करने का ऐसा ही एक चौंकाने वाला प्रयोग जापान में भी सफल हो चुका है। जापान के वैज्ञानिकों ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिसने प्रजनन विज्ञान (रीप्रोडक्टिव बायोलॉजी) की परिभाषा ही बदल दी। ओसाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कात्सुहिको हयाशी और उनकी टीम ने पहली बार ऐसे स्वस्थ चूहे पैदा किए, जिनके दोनों जैविक माता-पिता नर (मेल) थे। टीम ने नर चूहों की त्वचा कोशिकाओं से अंडाणु (एग) तैयार किए। इन कृत्रिम अंडाणुओं को मादा चूहों में प्रत्यारोपित किया गया। नतीजा-स्वस्थ और सामान्य पिल्ले (पप्स) जन्मे। इस उपलब्धि को नेचर जर्नल में प्रकाशित किया गया। इससे यह साबित होता है कि सिर्फ नर कोशिकाओं से भी अंडाणु बनाए जा सकते हैं, जो जीवन को जन्म देने में सक्षम हैं। यह खोज फिलहाल चूहों तक सीमित है, लेकिन इसका महत्व बहुत बड़ा है। भविष्य में बांझपन के इलाज में यह एक क्रांतिकारी विकल्प बन सकता है।
किसके लिए नई राह ?यह खोज उन महिलाओं के लिए वरदान साबित हो सकती है जिनके पास अंडाणु नहीं हैं-चाहे उम्र बढ़ने के कारण हो या कैंसर जैसे इलाज के बाद। यही नहीं, यह भविष्य में समलैंगिक जोड़ों के लिए भी नया विकल्प खोल सकती है। दो पुरुष भी इस तकनीक की मदद से अपने आनुवंशिक रूप से जुड़े बच्चे का सपना पूरा कर पाएंगे।
विशेषज्ञों की राय : डॉ. पौला अमाटो, सह-लेखकः ‘यह तकनीक उन महिलाओं और जोड़ों को विकल्प दे सकती है, जिनके पास कोई और रास्ता नहीं है।’ प्रो. अमांडर क्लार्क (यूसीएलए): ‘यह अभी इलाज नहीं, लेकिन विज्ञान की दुनिया में यह एक महत्वपूर्ण शुरुआत है।’ प्रो. यिंग चेओंग (साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी): ‘यह तकनीक हमारी बांझपन और गर्भपात की समझ को ही बदल सकती है।’







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