निशाने पर बचपन: खाद्य पदार्थों में कुरकुरापन और शेल्फ लाइफ बढ़ाने मिलावट
टाइटेनियम डाइऑक्साइड वहां दीवार चमकाता, हमारे यहां चॉकलेट में
नई दिल्ली. खाने-पीने की चीजें बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीयों की सेहत से खिलवाड़ कर रही हैं। सैकड़ों ऐसे खाद्य पदार्थ बाजार में बिक रहे हैं, जिनमें खतरनाक तरीकों से स्वाद और कुरकुरापन बढ़ाया जाता है। इसके लिए जिन तत्त्वों को मिलाया जाता है वे प्राकृतिक नहीं, लैब में विकसित रसायन होते हैं। ये पाचन तंत्र, लिवर, किडनी, आंतों और हृदय को नुकसान करते हैं। नर्वस सिस्टम को बिगाड़ने व कैंसर जैसी बीमारियों का कारण भी बन रहे हैं। अधिकतर विकसित देश इन्हें प्रतिबंधित कर चुके हैं या इसकी प्रक्रिया हैं। लेकिन, भारत में यही रसायन हमें और हमारे बच्चों को ‘एडिक्ट’ बनाने के लिए खिलाया जा रहा है। शेषञ्चपेज ८
राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस (7 नवंबर) के मद्देनजर देश में इनके बेरोक उपयोग के खुलासा कर खास रिपोर्ट तैयार की।
हाइड्रोजनेटेड पाम ऑइल: खाद्य पदार्थों को लंबे समय रखने के लिए इस्तेमाल
प्रतिबंध: एक ट्रांस फैट, जिससे खाद्य पदार्थों को लंबे समय सुरक्षित रखा जाता है। यूक्रेन इसे चॉकलेट, आइसक्रीम, बेबी फूड और कई तरह के डेयरी उत्पादों में प्रतिबंधित कर चुका है। स्विट्जरलैंड, कनाडा, थाइलैंड में भी बैन।
क्यों खतरनाक: अमरीकी एफडीए ने माना, इसे प्रोसेस्ड फूड से हटाया तो हजारों हार्ट अटैक रोक सकते हैं। यह खतरनाक कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाता है। कैंसर की आशंका।
भारत में: अब भी अधिकतर बिस्किट और चॉकलेट से लेकर मीठी चीजों में खूब उपयोग।
प्रोपाइल पैराबेन: साबुन-शैंपू में डालते थे, अब फूड की शेल्फ लाइफ बढ़ा रहे
उपयोग: इसका दीवारों पर कोटिंग और प्लास्टिक पर पेंट व प्रिंटिंग में उपयोग होता है। यह रंगों को लंबे समय तक चमकदार व टिकाऊ बनाता है। चॉकलेट, कैंडी, मार्शमैलो, च्यूइंग गम, पेस्ट्री व केक को आकर्षक बनाने में भी इसका उपयोग हो रहा।
प्रतिबंध: इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, चीन और जापान में इस प्रिजर्वेटिव पर रोक लगी है। कई अमरीकी राज्यों में पाबंदी की तैयारी। फूड सेफ्टी एक्ट के तहत इसका उत्पादन, वितरण और खाद्य-पेय पदार्थों में मिलाकर बेचना बंद होगा।
खतरा : अमरीकी एजेंसियों ने पाया कि इससे कैंसर की आशंका है। प्रजनन स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। कई साबुन-शैंपू कंपनियां अपने उत्पादों में इसका उपयोग रोक उन्हें पैराबेन-फ्री नाम से अपने उत्पाद महंगे दाम पर बेचने लगी हैं।
भारत में: एफएसएसएआई ने मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के नाम पर इसकी अनुमति दी है। कई ड्रिंक्स, चिप्स, ब्रेड आदि में उपयोग हो रहा है।
खुद से पूछिए…किसी उत्पाद में क्या है, पिछली बार आपने कब पढ़ा था?
फूड इंडस्ट्री के एक्सपर्ट डॉ. गौरव शर्मा के अनुसार ‘अगर एक कंपनी को भारत में स्किटल्स जैसे उत्पाद को चमकीला बनाना है, तो उसे टाइटेनियम डाइऑक्साइड जैसे केमिकल का उपयोग करना ही होगा क्योंकि प्राकृतिक विकल्प बेहद महंगे हैं। भारत में मिल रही 90त्न चॉकलेट सिर्फ नाम की हैं, वे चॉकलेट हैं ही नहीं। वे पाम ऑइल व कृत्रिम फ्लेवर से भरे मीठे और गैर-कोकोआ उत्पाद हैं। खाद्य पदार्थों में हानिकारक केमिकल मिलाने पर विकसित देशों जैसी सख्ती हमारे यहां नहीं हैं। इसके पीछे कुछ एजेंसियों की लापरवाही व नागरिकों का कम जागरूक होना भी है। खुद से पूछिए कि पिछली बार हमने किसी उत्पाद में शामिल चीजों की सूची कब जांची थी? खान-पान के मामले में हमने जब विकसित देशों की नकल करनी चाही, तभी से समस्या शुरू हुई। उन देशों में विकास का स्तर हासिल करने के बाद खान-पान में गैर-जरूरी चीजें आईं। चूंकि हमें वही चीजें सस्ते में चाहिए इसलिए कंपनियों ने वही उत्पाद कई तरह के केमिकल, कृत्रिम फ्लेवर और रंग मिलाकर कम कीमत पर हमारे सामने पेश कर दिए। हम इन्हें खरीद रहे हैं, अपने बच्चों को खिला रहे हैं। यह खतरनाक है।’
क्यों प्रतिबंध: यूरोपीय फूड सेफ्टी अथॉरिटी ने 2022 में खाद्य वस्तुओं में उपयोग खतरनाक माना और इसे बैन किया। अमरीका में मार्स कंपनी ने भी 2025 में खाद्य पदार्थों में मिलाना बंद किया।
मीट को सड़ने से रोकता है, हमें खिलाया जा रहा
प्रतिबंध: टर्शरी ब्यूटाइलहाइडो क्विनोन (टीबीएचक्यू) एक एंटीऑक्सीडेंट और प्रिजर्वेटिव है। जापान में इसे किसी भी खाद्य सामग्री में उपयोग पर रोक है। कनाडा और न्यूजीलैंड ने उपयोग सीमित कर रखा है। यूरोपीय संघ में प्रतिबंध की मांग हो रही है।
यह स्किटल्स की सामग्री सूची में शामिल मिला है। खाद्य पदार्थ नियामक एफएसएसएआई ने इसे उपयोग की अनुमति दी हुई है।
यह एक्ट-2 कंपनी के पॉपकॉर्न और अधिकतर कोरियन इंस्टेंट नूडल्स की सामग्री सूची में शामिल है। यहां रोक नहीं है।







Users Today : 12
Users Yesterday : 26