नई दिल्ली. नेशनल स्टेटिकल ऑफिस (एनएसओ) के 2025 कॉम्प्रिहेंसिव मॉड्यूलर सर्वे-एजुकेशन की रिपोर्ट में ग्रामीण और शहरी शिक्षा में गहरा अंतर उजागर हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार शहरी परिवार निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर ग्रामीण सरकारी स्कूलों की तुलना में 9 गुना अधिक खर्च उठा रहे हैं। देश में शिक्षा पर होने वाले खर्च का 95त्न तक परिवार को खुद वहन करना पड़ता है। यानी ट्यूशन फीस, किताबें आदि के लिए सरकार या अन्य सोर्स से बेहद कम मदद मिलती है।
निजी स्कूलों में औसतन खर्च 25,000 रुपए
देश में शिक्षा खर्च का सबसे बड़ा बोझ परिवारों पर ही। सरकार या अन्य सोर्स से बेहद कम मिलती है मदद।
स्कूलों की फीस में भी बड़ा अंतर
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले सभी बच्चों में से केवल लगभग 26 से 27त्न बच्चों से ही फीस ली जाती है। हर चार बच्चों में से सिर्फ एक बच्चे के परिवार को फीस देनी पड़ती है, जबकि बाकी बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह मुफ्त होती है या नाममात्र की फीस होती है।
शहर में हर ४ में से एक बच्चा लेता कोचिंग
किताब-कॉपी, यूनिफॉर्म व ट्रांसपोर्टेशन खर्चे शहरी परिवारों पर व बोझ डालता है। वहीं 30त्न शहरी परिवार बच्चे की कोचिंग पर औसतन 4,000 रु. सालाना खर्च करते हैं। 12वीं में यह खर्च 10,000 रुपए तक पहुंच जाता है। हर चार में से एक बच्चा कोचिंग लेता है।
सरकारी स्कूल गांव की रीढ़
देशभर के कुल नामांकन का 55.9त्न सरकारी स्कूलों में है। ग्रामीण भारत में 66त्न बच्चे इन्हीं में पढ़ते हैं। शहरों में सरकारी स्कूल 30.1त्न है। इन स्कूलों में भवन, शिक्षक-छात्र औसत, लैब्स आदि की कमी शिक्षा की गुणवत्ता को सीमित करती हैं। इसी कारण शहरी परिवार निजी स्कूलों का विकल्प चुनते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कम फीस के कारण सरकारी स्कूल पहली पसंद हैं।
देश में 31.9 फीसदी बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, जिनमें ज्यादातर शहरी हैं। इनका खर्च सरकारी स्कूलों से कई गुना ज्यादा है। यहां एक बच्चे पर परिवार को औसतन 25,000 रुपए सालाना खर्च करना पड़ता है, जबकि सरकारी स्कूल में यह खर्च सिर्फ 2,800 रुपए के आसपास है।







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