पक्षियों से व्हेल तक फैला संवाद संसार
इंसानों की भाषा सीखने वाले कुछ मॉडल को जानवरों पर भी आजमाया जा रहा है।
लंदन. यह मुमकिन है कि आने वाले दशकों में हम डॉल्फिन से मौसम पर बात करें या पक्षियों से जंगल की खबर पूछें! अभी यह सपना है, पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) जिस रफ्तार से आगे बढ़ रही है, वह दिन शायद बहुत दूर नहीं जब इंसान और जानवर सचमुच बातचीत करेंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ रेन, बर्कले स्थित अर्थ स्पीशीज प्रोजेक्ट और कई संस्थान अब एआई की मदद से जानवरों की बोलियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे एआई मॉडल्स बनाए जा रहे हैं जो लाखों घंटों की रिकॉर्डिंग से सीखकर जानवरों की भाषा को ‘रेस्पॉन्स’ देने में जुटे हुए हैं। एक नया मॉडल नैचरएलएम ऑडियो तो पक्षियों के गीत, व्हेल की क्लिक और इंसानी ध्वनियों के बीच फर्क पहचानने की क्षमता दिखा रहा है। वहीं, कई अन्य ट्रांसफर एआई मॉडल्स पहले इंसानी भाषा सीखते हैं, फिर उन्हें जानवरों की आवाजों पर आजमाया जा रहा है।
डिकोडिंग में एआई की ले रहे भरपूर मदद
अब एआई की मदद से खोजा जा रहा है कि क्या जानवरों की ‘भाषा’ में डिस्प्लेसमेंट (अतीत या भविष्य की बातें), प्रोडक्टिविटी (नए विचार गढ़ना) व डुअलिटी (छोटी इकाइयों से बड़े अर्थ बनाना) जैसे भाषा के तीन मुख्य नियम मौजूद हैं या यह केवल संकेत या चेतावनी तक सीमित हैं। एआइ ध्वनि के पैटर्न, आवृत्ति, समय-क्रम व अन्य सूक्ष्म बदलावों का विश्लेषण कर रहा है जिन्हें मानव कान शायद न पकड़ पाते हों।
डॉल्फिन्स अपने साथियों को वर्षों बाद भी नाम से पुकार सकती हैं। कौवे जटिल पैटर्न पहचानने में माहिर हैं। बोनोबो बंदर अलग-अलग ध्वनियों को जोड़कर वाक्य जैसी संरचना बना सकते हैं। जापानी पक्षी ‘टिट्स’ भी आवाजों के क्रम से अर्थ बदलते हैं, जो भाषा के नियमों की ओर इशारा करता है। कैरिबियाई समुद्र में स्पर्म व्हेल की ‘क्लिक’ ध्वनियां ‘कोडा’ बनाती हैं, जो ध्वन्यात्मक वर्णमाला जैसी लगती हैं।







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